स्मार्टफोन की बैटरी लाइफ और यूजर की आंख बचाने के लिए अधिकतर कंपनियां अपने एप में डार्क मोड पर कार्य कर रही हैं। आइए जानते हैं कि आखिरकार यह डार्क मोड क्या है और यह कैसे काम करता है।
स्मार्टफोन की डिस्प्ले पर वर्तमान में सफेद स्क्रीन दिखती है, जिस पर आमतौर पर टेक्स्ट काले रंग के होते हैं और भी अन्य रंग दिखते हैं लेकिन उनकी संख्या कम होती है। ऐसे में सफेद स्क्रीन से बैटरी खपत तो ज्यादा होती ही है, साथ ही स्क्रीन को ज्यादा बैटरी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा सफेद स्क्रीन से ब्लू रेज (नीली किरण) निकलती हैं, जो आंखों को प्रभावित करती हैं। इस कारण आंखों से पानी आना और आंखों की जलन जैसी परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इन सभी दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए डार्क मोड का इस्तेमाल किया जा सकता है। डार्क मोड से स्क्रीन का अधिकतर हिस्सा काला रंग धारण कर लेता है और टेक्स्ट सफेद रंग के हो जाते हैं। ऐसे में डार्क मोड को ज्यादा साफ तरीके से पढ़ा जा सकता है चाहे भले ही धूप बहुत तेज क्यों न हो।
गूगल ने माना डार्क मोड के फायदे
गूगल ने बीते नंवबर को खुद पुष्टि की थी कि एंड्रायड फोन को डार्क मोड में रखने पर कम बैटरी की खपत होती है। गूगल ने थोड़ी जानकारी का खुलासा किया है कि किस प्रकार आपका फोन बैटरी की खपत करता है। बैटरी की खपत करनेवाला सबसे बड़ा कारक स्क्रीन की ब्राइटनेस है और स्क्रीन का कलर भी है। डार्क मोड कुल मिलाकर ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) या एप्लीकेशन के कलर को बदल कर काला कर देता है।43 फीसदी तक बैटरी बचत
इंटरनेट दिग्गज ने प्रजेन्टेशन में दिखाया कि किस प्रकार से डार्क मोड फुल ब्राइटनेस स्तर पर 'सामान्य मोड' की तुलना में 43 फीसदी कम बैटरी की खपत करता है, जबकि पारंपरिक रूप से बहुत ज्यादा सफेदपन का इस्तेमाल किया जा रहा है। तकनीक दिग्गज ने इस दौरान खुद की भी गलती मानी कि वह एप डेवलपरों को अपने एप्लीकेशन के लिए सफेद रंग के इस्तेमाल को प्रोत्साहित कर रहा था, जिसमें से खुद गूगल के एप भी शामिल थे।डार्क मोड यूज करना खतरनाक हो सकता हे
आपका विजन हो जाएगा कमजोर
स्मार्टफोन पर लगातार डार्क मोड इस्तेमाल करने के बाद आपकी आंखें उसे ही accept कर लेती हैं और वाइट कलर का टेक्स्ट पढ़ना बेहतर लगता है। लंबे वक्त तक डार्क मोड इस्तेमाल करने के बाद अचानक लाइट मोड में कोई ऐप या डिवाइस यूज करना पड़े तो इसका असर आपके विजन पर पड़ सकता है। डार्क मोड का लगातार इस्तेमाल आंखों की बीमारी की वजह बन सकता है और लाइट से डार्क टेक्स्ट के बीच स्विच करने के बाद आपकी आंखें अचानक इस चेंज को accept नहीं कर पाती हैं। ऐसी कंडीशन की वजह से ब्राइटबर्न की स्थिति भी दिख सकती है।आंखों में हो सकता है एस्टिगमेटिज्म
अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, यूजर्स में एस्टिगमेटिज्म नाम की एक बीमारी देखने को मिल रही है। इसमें एक या दोनों आंखों के कॉर्निया का शेप अजीब हो जाता है और ब्लर दिखना शुरू हो जाता है। ऐसे लोग वाइट बैकग्राउंड पर ब्लैक टेक्स्ट के मुकाबले ब्लैक बैकग्राउंड पर वाइट टेक्स्ट आसानी से नहीं पढ़ सकते। डिस्प्ले ब्राइट होने पर आइरिस छोटा हो जाता है, जिससे कम लाइट आंख में जाए और डार्क डिस्प्ले के साथ उल्टा होता है। ऐसे में आंख के फोकस पर असर पड़ता है।
डार्क मोड से बचने के उपाय
बदलते रहें लाइट और डार्क मोड
डार्क मोड का इस्तेमाल बिल्कुल रोक दें, ऐसा जरूरी नहीं है लेकिन डार्क के साथ-साथ लाइट मोड पर भी स्विच करते रहें। बेहतर होगा कि आप डार्क मोड को शेड्यूल कर लें और शाम को अंधेरा होने के बाद ऑन करें। इसी तरह दिन होते ही लाइट मोड को इनेबल कर लें। दिन में डार्क मोड इस्तेमाल करना आंखों पर ऐसा असर करता है, मानो आप रात के अंधेरे में सो रहे हों और अचानक दोपहर जैसी धूप आ जाए। स्क्रीन की ब्राइटनेस कुछ इसी तरह काम करती है और इसमें अचानक हुआ बदलाव आपकी नजर कमजोर कर सकता है।
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